साइबर क्राइम में सिविल और क्रिमिनल न्यायालय की अधिकारिता
भारत में साइबर कानून की अधिकारिता
भारत में साइबर कानून की अधिकारिता दो प्रकार से होती है
१ सिविल अधिकारिता !
२ दण्डिक अधिकारिता !
2. साइबर कानून के अंतर्गत सिविल न्यायालय अधिकारिता
साइबर कानून से सम्बंधित अधिकारिता सदैव विषय वास्तु से सम्बंधित होती है ,जो धन सम्बन्धी निम्नतम अधिकारिता वाले न्यालय से सम्बन्ध रखते है !
- धन सम्बन्धी निम्नतम अधिकारिता वाले न्यायालय !
- विषय वस्तू अधिकारिता
- छेत्रीय अधिकारिता
साइबर कानून के अंतर्गत वाद हेतुक का अधिकार एक से अधिक हो सकता है ,जैसे की एक स्थान जहा से वेबसाइट का अवलोकन किया गया ,या जहा पर सर्वर लगा हुआ है या ऐसी जगहे हजा पर एलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड भेजा गया हो ! सुचना प्रेद्धोगकी अधिनियम 2000 की धरा 13 में इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख के प्रेषण (dispatch )तथा प्राप्ति (receipt ) के समय के बारे में प्रावधान दिए गए है !
3 -छेत्रीय अधिकारिता सिविल प्रक्रिया सहिंता के अनुसार
1 -अचल संप्पति
२-चल संपत्ति एवं व्यक्ति
(1)अचल संपत्ति के लिए ---:
- दावों का वहा संस्थित किया जाना जहा पर विषय वास्तु स्थित है {धारा -16 }
- विभिन्न न्यायालयो की अधिकारिता के भीतर स्थित जंगम सम्पत्ति के लिए वाद {धारा 17 }
- जहा स्थानीय न्यायालयो की अधिकारिता की स्थानीय समय स्थित है ,वह वाद के संस्थित किए जाने का स्थान !
ii चल संपत्ति के लिए
- शरीर या जंगम संपत्ति के प्रति किये गए दोषो के लिए प्रतिकर के लिए वाद {धारा 19 }
- अन्य वाद वहा दायर किय जा सकते है जहा प्रतिवादी निवास करते है या वाद कारण (cause of action )उत्त्पन्न होता है !{धारा २०}
- जाँच ओर विचरण का स्थान {धारा -177 एवं 178 }
- जहा एह निश्चित है की अपराध एक से अधिक स्थानो में किया गया है , धारा [ 178 -क ]
- अपराध वह विचारणीय होगा जहा अपराध किया गया या जहा परिणाम निकला {179 }
- आपराधिक दुर्विनियोग या आपराधिक न्यास भंग के किसी अपराध की जाँच या विचारण{ धारा 181{(4 }
- छल से सम्बंधित अपराध (धारा 182 )
इंटरनेट पर वेबसइट तीन प्रकार की होती है ,
(१)------एक्टिव वेबसइट -----एक वेबसइट जो व्यक्तिगत सविदा (individual contract ) के आधार पर बार -बार कम्यूटर पर फाइलें प्रेषित की जाती है, जो व्यक्तिगत अधिकारिता का पर्याप्त आधार है !
{२}निष्क्रिय वेबसइट ------ इंटरनेट उपभोक्ताओं को मात्र सूचनाय जिसमे साइबर अधिकारिता का कोई ठोस आधार नहीं है !
\{३}उपभोक्ता को सुचना का अदन प्रदान करने वाली वेबसइट ------व्यवसाइकता का आदान प्रदान की प्रकृति होने के कारण इंटेरेक्टिव के लेवल का निर्धारण न्ययालय करता है !
6 ----- हैकिंग के अपराध में सिविल उत्तरदायित्व
- साइबर अपील अधिकरण एक न्याय निर्णय अधिकरण है--------
- सुचना प्राधौगकी 2000 के अध्याय 10 की धरा 48 से 64 तक इसके सम्बन्ध में प्रावधान दिया गया है
- न्यायलिनीय अधिकरण एक सिविल न्यायालय समझा जायगा
- भारतीय दंड सहिंता के प्रावधान लागु होंगे !
- मिथ्या साक्छ्ये के लिए दंड {धरा 193 }
हाकिंग के अपराध के लिए दण्ड ----
- सदोष अभिलाभ धारा {23}
- बेईमानी पूर्वक से धारा {24 }
- कपट पूर्वक धारा {25 }
- आपराधिक अतिचार धारा {44 }
२-- हैकिंग के अपराध के लिए सिविल अधिकारिता वाद हतुक के लिए
शरीर या जंगम सप्पत्ति के लिए किये गए अपराध के लिए धरा {19 }
अन्य वाद वह संस्थित किये जा सके गए जहा प्रतिवादी निवास करता हो धारा {20}
डिक्रियों का निष्पादन सिविल प्रक्रिया सहित के आधार पर धरा {44 क }
डिक्रियों का निष्पादन भारत से बाहर ----{धारा -45}
दंड प्रक्रया सहिंता के अनुसार
जांच और विचारण का मूल स्थान {धारा 177 }
अपराध वही विचारणीय होगा जहा अपराध घटित हुआ है { धारा 18 }
सुचना एवं प्रद्योगकी के नियम के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख के स्थान एवं प्राप्ति के लिए धरा १३ विशेष रूप से देखे !
साभार
प्रदीप तिवारी {अधिवक्ता}
(जिला एवं सत्र न्यायालय कटनी )
(जिला एवं सत्र न्यायालय कटनी )