Sunday, August 11, 2019

Misuse of section 498{A} and dowry act.


दहेज़ प्रथा और 498(A) भारतीय दण्ड सहिंता की धारा के हो रहे दुरपयोग पर लेख !


वर्णन ------:

भारतीय समाज मेँ विवाह पश्चात कन्या की विदा होने पर मायके पक्छ द्वारा उपहार दिए जाने की प्रथा बहुत पुरानी थी, अगर हम महा भारत और रामायण आदि ग्रंथो का अध्ययन करें तो इसका वर्णन हमें मिलता हैँ, जब माता सीता की विदा मिथला से हुई थी तब राजा जनक द्वारा उनकी बिदा के दौरान ढेर सारे उपहार दिए गए थे यहा तक की उनकी सेवा के लिये दास दासियो को भी भेजा गया था, इसी तरह से महाभारत काल मेँ पांचाल नरेश द्वारा महारनी द्रोपती की बिदा मेँ उनको उपहार दिए गए थे परन्तु यह कोई मांग नहीं थी यह अपनी पुत्री को स्वेक्छा से दिए गए उपहार थे, कोई बाध्यता नहीं थी, अन्य प्राचीन भारतीय धर्म ग्रंथो का अध्ययन करें तो दहेज़ जैसी कुप्रथा का वर्णन कही नहीं मिलता|323 ईसा  पूर्व मौर्य कालीन इतिहास  पर भी दृष्टि डाले तो इस प्रथा के आरम्भ होने का उल्लेख नहीं मिलता|दहेज़ प्रथा की मुख्य रूप से शुरुआत मध्य काल मेँ हुई परन्तु यह कुप्रथा कब से आंरभ हुई इसके ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं हैँ, इस समय विवाह के दौरान वर पक्छ द्वारा वधु पक्छ द्वारा उपहार लेने देने के सम्बन्ध मेँ ठहराव किया जाने लगा लेन देन की बाते शुरू  हो गई और एक कुप्रथा ने समाज मेँ जन्म ले लिया, और देखते देखते समाज मेँ व्यापक रूप से फेल गई, दहेज़ के लिए महिलाओ को प्रताड़ित किया जाने लगा यहा तक की बहुओ  को ससुराल मेँ जलाया जाने लगा|उस समय जागरूकता की कमी एवं महिलाओ के शिक्छित न होने के कारण वे इस कुप्रथा के विरुद्ध आवाज़ नहीं उठा पाती थी |
समाज मेँ फैले इस दहेज़ के दानव को देखते हुए प्रथम बार  सन  1967 मेँ  दहेज़ एक्ट बनाया गया जिसमे दहेज़ का लेना देना अपराध घोषित किया गया और अगर कोई व्यक्ति दहेज़ की मांग करता हैँ या कोई मांग करने पर दहेज़ देता हैँ दोनों के लिए सजा का प्रावधान किया गया, परन्तु इसके बाद भी इस अपराध मेँ कोई कमी नहीं आयी क्योंकि वधु पक्छ की इसमें मौन सहमति होती थी और अपनी बेटी की अच्छे घर मेँ शादी के लालच मेँ लोग दहेज़ देते रहते थे |

दहेज़ प्रथा को  रोकने के लिए कानून मै व्यापक शंसोधन     --:

जैसे जैसे समाज उन्नति के पथ पर अग्रसर हुआ इस कुप्रथा के विरोध मेँ स्वर उठने लगे, सन 1980--82 मेँ पूना मेँ महिला संगठनों द्वारा आंदोलन चलाया गया यह आंदोलन मंजू शारदा और साहिला ललकार की दहेज़ के लिए निर्मम हत्या के लिए चलाया गया था, और भारत सरकार को महिलाओ की सुरक्छा के लिए सोचने पर मज़बूर कर दिया था,इसी समय भारतीय फ़िल्म जगत द्वारा इस मुद्दे से समन्धित फिल्मे बनाई गई जैसे दूल्हा बिकता हैँ बोलो खरीदोगे आदि !समाज मेँ इस कुप्रथा के व्यापक विरोध को देखते हुए भारतीय दण्ड सहिंता, भारतीय सक्झय अधिनियम, एवं दण्ड प्रक्रिया सहिंता मेँ संशोधन किया गया !भारतीय दण्ड सहिता मै संशोधन कर दहेज़ के लिए महिला और उसके परिवार को प्रताड़ित करने पर 498(A)धारा को जोड़ा गया अपराध अजमानतीय घोषित किया गया साथ ही दहेज़ की मांग करने वाले और उसके परिवार वाले जो इस कृत्य मे शामिल हैँ तीन वर्ष से अधिक की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया, साथ ही दहेज़ के लिए किसी महिला की हत्या करने पर धारा 304{B} को जोड़ी गयी, जिसमे सात साल से अधिक की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया, साथ मे घरेलू हिंसा अधिनियम को भी लाया गया इन कानूनों को लागू करने का मुख्य उद्देश्य समाज मे महिलाओ को व्यापक रूप से सुरक्छा प्रदान करना था साथ ही दहेज के लिए हो रहे जघन्य अपराधों को भी  रोकना था, परन्तु जैसा हम जानते हैँ कानून लोगो  की भलाई के लिए बनाये जाते हैँ परन्तु इसका व्यापक रूप से दुरपयोग भी शुरू हो जाता हैँ, इस कानून का भी वर्तमान समय मे काफ़ी दुरपयोग हो रहा हैँ, कानून हमेशा समाज मे केवल और केवल लोगों  की भलाई के लिए बनाये जाते हैँ, यह कानून इसलिए बनाया गया की एक सभ्य समाज मे बहु बेटिओ का दहेज़ के लिए जलाया जाना कतई उचित नहीं परतुं इसका दुरपयोग भी निरंतर बढ़ता जा रहा हैँ आंकड़े बताते हैँ की  दहेज़ प्रकरण मे लिखाई गई हर तीसरी एफ. आई. आर फ़र्ज़ी होती हैँ और न्यायालय मे अभियुक्त फ़र्ज़ी मुकदमा होने के कारण दोषमुक्त हो जाते हैँ!सावित्री देवी विरुद्ध रमेश चंद्रन ओर अन्य के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पाया की इस एक्ट का दुरपयोग हो रहा है ,इसी तरह से राजेश कुमार एवं अन्य विरूद्ध उड़ीसा राज्य के मामले में माननीय सर्वोच्च  न्यायालय ने पाया की इस एक्ट का व्यापक  दुरपयोग हो रहा है और आवश्यक दिशा निर्देश जारी किये1 परन्तु इसका दुरपयोग रुक  नहीं रहा इस धरा का उपयोग ब्रह्म अस्त्र के भाती  दूसरे पक्छ  को झुकाने के लिए किया जा रहा है, और विडबंना यह है की एक महिला ही दूसरे  महिला के प्रति इसका उपयोग कर रही है ,  और मामले पंजीबद्ध होने पर परिवार के पढ़ने लिखने वाले बच्चे भी घसीट दिए जाते है और उनकी जिंदगी बर्बाद होती है!इस धारा के बढ़ते दुरपयोग के कारण पुरषो में आत्म  हत्या की पृवत्ति बढ़ रही है ,एवं वे  डिप्रेशन के शिकार  हो रहे है !

धारा 498{ A } के दुरपयोग होने के मुख्य कारक -----:

  • मायके पक्छ का लड़की के ससुराल में अत्यधिक दखल !
  • पढ़े लिखे होने के कारण अहँकार का आपस में टकराना !
  • धैर्य की अत्याधिक कमी !
  • रिश्तो से जयादा  धन को अत्यधिक  महत्व देना !
  • भोग वादी संस्क्रति का उदय !
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दो  जजों  की  खण्ड  पीठ ने दहेज़ एक्ट के हो रहे दुरपयोग को रोकने के लिए एक व्यवस्था   अपने एक निर्णय में  दी जो निम्न प्रकार है -----:
  • अगर कोई ऍफ़. आई.आर  पीड़ित पक्छ द्वारा लिखाई  जाती है तो अभियुक्त गणो  की सीधे गिरफ़्तारी नहीं होंगी !
  • समन्धित एफ. आई.आर को मजिस्ट्रेट के यहा पर भेजा जायेगा जिस पर विचार कnरने के लिए सिविल सोसाइटी का गठन होगा !
  • उक्त पैनल सम्बंधित मामले का सुक्छ्म्ता  से परिशीलन करेगा और सम्बंधित पाक्छाकारो  को  बुलाएगा और अगर पायेगा की अपराध कारित  हुआ है तो मामला पंजीबद्ध होगा !
परन्तु 2019 में तीन जजों की खण्ड पीठ ने कुछ महिला संगठनों की याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्णय पारित किया और कहा की उक्त मामले में सिविल सोसाइटी का गठन व्योहारिक नहीं है और उक्त दी हुई व्यवस्था को पलट दिया और निम्न दिशा निर्देश पारित किए !
  • अगर  इस सबंध में कोई एफ.आई.आर दर्ज होती है तो पुलिस सीधे गिरफ्तार कर मुकदमा पंजीबद्ध करेगी !
  • मामले की सुनवाई   सामन्य प्रक्रिया के तहत होगी !
  • अग्रिम जमानत की सुविधा होगी पीड़ित पक्छ अग्रिम जमानत की याचिका न्यायालय में लगा सकता है !
माननीय  सर्वौच्च  न्यायालय के इस फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए , परन्तु निश्चित रूप से इस फैसले से इस ऐक्ट का दुरपयोग करने वाले लोगो को व्यापक रूप से बल मिलेगा, हम एक सभ्य समाज की और बढ़ रहे है जहा पर स्त्री  और पुरुष कंधे से कन्धा मिलाकर चल रहे है ,इस समय समाज में अगर कोई  किसी कानून का गलत इस्तेमाल कर किसी  बेगुनाह को फसाय  तो  यह कतई ठीक नहीं ,कानून की भी यही मन्शा रहती है की किसी बेगुनाह को सजा न मिले ,अगर मिलती है तो उसका सारा परिवार प्रताडित होता है , अतः अब इस कानून में व्यापक संशोधन की आव्यशकता है ,साथ ही अगर कहा जाता है की स्त्री और पुरुष बराबर है तो कानून में भी संशोधन कर पुरषो के पक्छ में कानून बनाने की आव्यशकता है !

साभार 
प्रदीप तिवारी (अधिवक्ता )
7879578306