Sunday, November 3, 2019

lautzo ka naye


लाओत्ज़े का न्याय 


चीन में 6 वी शताब्दी लगभग 2500 वर्ष पूर्व महान दार्शनिक हुए जिनका नाम था लाओत्ज़े उनके बारे में एककिवदंती है की वे जब पैदा हुए तो काफी बुजुर्ग दिखाई देते थे ,अर्थात उनका ज्ञान एवं अनुभव पैदा होते ही उनके साथ था 
उनके बारे में विचित्र कथाय भी प्रचलित है ,कहते है की वो भैसे की सवारी किया करते थे,तत्कालिक चीन साम्राज्य में उनका बड़ा  आदर था ,जब अंतिम समय में चीन छोड़ रहे थे तो चीन की दिवार को पार करने से पूर्वे वहा के दरबान ने उनसे कहा की अंतिम समय में जाते हुए आप जीवन की कुछ अनमोल सीख बता जाए जो में इस दीवाल पर लिख दू ,आज भी वो सीख चीन की दीवाल पर लिखी हुई है। यह लेख लाओत्से के न्याय के सन्दर्भ में जिससे हमे यह सीख मिलती की वर्तमान में न्याय व्यवस्था किस प्रकार होना चाहिए ,एक बार चीन के जिस राज्य में लओत्ज़े निवास करता उस राज्य में एक शाहूकार के यहा पर चोरी हो गई ,यह बात उस राज्य के सम्राट तक पहुंची साहूकार सम्राट के पास न्याय की गुहार लेकर दरबार में पंहुचा ,सम्राट को बड़ा आश्चर्य हुआ की उसके राज्य में चोरी कैसे हुई ,सम्राट बोला  साहूकार तू ठहर जा इसका  न्याय होगा और तुझे न्याय जरूर मिलेगा पर न्याय कोई और करेगा, चीन का सम्राट लाओत्ज़े का शिष्य था ,वह अपने गुरु के पास गया और बोला गुरुदेव मेरे राज्य में एक साहूकार के घर चोरी हो गई है ,चोर पकड़ा गया है ,पर इसका न्याय आपको करना है , लाओत्ज़े बोला ये काम मुझसे न करवा मैने अगर न्याय किया तो तुझे बहुत दिक्कत हो जाएगी तू मुझे इस झमेले में मत डाल तू खुद  न्याय कर ,पर सम्राट नहीं माना और जिद पर अड़ गया और बोला की न्याय तो आपको करना होगा सम्राट की जिद के कारण लाओत्ज़े मान गए और बोले ठीक है में न्याय करुगा पर जो भी न्याय होगा वह तुझे स्वीकार करना होगा सम्राट तयार हो गया। दूसरे दिन लाओत्ज़े दरबार में पहुंचे  सभा  बुलाईगई सम्राट की आसंदी में लाओत्ज़े विराजित हुए चोर और साहूकार दोनों को बुलायागया लाओत्ज़े ने सर्वे प्रथम चोर  से प्रश्न किया किया क्या कारण था की तूने चोरी जैसा अपराध किया ,निसकोंच बिना घबराये बोल चोर बोला में साहूकार के घर में पिछले दो साल काम कर रहा था उसके  यहा काम करना अतयन्त कष्ट करी था  वह वेतन तक समय से नहीं देता था दो दो दिन तक भोजन नहीं देता था ,एक दिन मेरी पत्नी बीमार हो गई मेने साहूकार से पैसे माँगे और उसने देने से इंकार कर दिया मज़बूरन मुझे चोरी करनी पड़ी ,इसके बाद साहूकार से लाओत्ज़े ने पूछा की तुझे क्या कहना है , जल्दी बता साहूकार बोला महाराज एक दिन में अपनी तिजोरी में बेसकीमती सामान रख रहा था और ये देख रहा था उसी रात यह  कीमती सामान पार करके फरार हो गया इसे कठोर दण्ड दिया जाए फांसी की सजा से काम न हो , लोउत्ज़ो कुछ देर तक सोचते रहे और बोले पहले इस साहूकार को पचास कोड़े मारे जाये और दस दिन के लिए कारागार में डाला जाये तथा चोर को छह मास की सज़ा दीं जाए एवम इसके परिवार की देखभाल की  उचित व्यवस्था सम्राट द्वारा की जाए ,सम्राट इस प्रकार के न्याय को देख  कर सकते में आ गया और बोला महारज ये केसा न्याय है ,चोर को तो फांसी दी जानी थी पर आपने साहूकार को भी सजा दे दी। लाओत्ज़े बोले मेने तुझसे पहले ही कहा था मुझसे न्याय न करा अगर में न्याय करुँगा तो तुझे दिक्कत हो जाएगी न्याय  भरे दरबार में हुआ है ,तुझे स्वीकार करना होगा ,सम्राट बोला में स्वीकार करता हु पर ये बताए आप ने इस प्रकार का न्याय क्यों किया, लाओत्ज़े बोले साहूकार को पचास कोड़े मारने एवं दस दिन की सज़ा इस लिए क्योकि इसने ऐसी परिस्थितिया उत्पन्न की चोर चोरी करने के लिए उद्धृत हुआ ,साहूकार उसे खाना नहीं देता था ,उसकी तनखाये भी नहीं देता था ,उसकी पत्नी  बीमार थी तब भी इसने उसकी मदद नहीं की ,इसने खुद स्वीकार किया मैने  कीमती सामान इसके सामने ही रखे ,इसने अपने यहा काम करने वाले व्यक्ति को उकसाया इसलिए यह भी सजा का पात्र है ,चोर को छह माह की सजा इसलिए की परिस्थिया कितनी भी विपरीत हो चोरी जैसा अपराध नहीं करना चाहिए ,इसके पास विकल्प  था यह सम्राट के पास आकर साहूकार की शिकायत कर सकता था पर चोरी विकल्प नहीं हो सकती फांसी इसलिए नहीं दी क्योकि यह जन्मजात चोर नहीं है ,इसे सुधार का एक मौका दिया जाना चाहिए ,इस घटना की चर्चा इसलिए की जा रही है की वर्तमान न्याय व्ययवस्था केवल अपराधी को दण्ड देने तक सीमित है जो की दण्ड प्रकिया सहिंता के आधार पर संचालित होती है जिसमे मुल्ज़िम बयान बाद में होते है ,जो एक फॉर्म के स्वरुप में होती है ,जिसमे हा नहीं के उत्तर लेकर खाना पूर्ती कर दी जाती है ,जबकि होना यह चाहिए की प्रकरण की प्रक्रिया शुरू होने से पहले मुल्ज़िम का बयान लिया जाना चाहिए जिससे पता चले की किन परिस्थितयो में अपराध हुआ ,हमारे देश की जलो ऐसे   हजारों लोग बंद है ,जिन्होंने गुस्से में या किसी सामजिक परिस्थिति वस अपराध किया उनकी अपराध करने की कोई मंशा नहीं थी ,पर उनके साथ न्याय नहीं हो रहा ,हमारी दण्ड प्रक्रिया सहिता के प्रवधान ब्रिटिश काल के है ,जिनका उद्देस्य कवल  भारतीयों को सज़ा देना होता था ,जिसमे सही न्याय के लिए व्यापक संशोधन की  आव्यशकता है। शिव पुराण में एक कथा आती जिसे  भारतीय समाज अहिलिया उद्धार के नाम से जनता है समाज को इस घटना की केवल एक पक्छ की जानकारी है जबकी मुनी गोतम  ने इंद्र को भी कठोर दण्ड दिया और साथ में चंद्र देव को दण्ड दिया जिसने इस घटना में सक्रिय भूमिका निभाई थी ,गौतम  मुनी ने न्याय शास्त्र की भी रचना भी  है  ,मनू स्मृती में भी लिखा है की सक्छियो के विचारण के पूर्वे अपराधी का  परीक्छण किया जाना चाहिए। अगर हम सामाजिक और मोनोवैज्ञनिक प्रक्रिया अपनाकर  न्याय व्यवस्था का सञ्चालन करे तो सही न्याय किया जा सकता है ,न्याय का  मन्तव्य केवल अपराधी को दण्ड देना नहीं बल्की उसको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का होना चाहिए ,बाइबिल में भी लिखा है की पाप से घृणा करो पापी से नहीं। 



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साभार 
प्रदीप तिवारी (जिला एवं सत्र न्यायालय कटनी)
अधिवक्ता 
7879578306 



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