Saturday, September 14, 2019

मोबाइल फ़ोन की चोरी /छिनौती

मोबइल फ़ोन की छिनौती /चोरी------:

आजकल सड़को / पार्को / सूनसान  जगहों पर मोबाइल फ़ोन की छिनौती होती है साथ ही घर ऑफिस एवं किसी स्थान पर मोबाइल फोन चोरी भी हो जाता है है ,भारत में इस सम्बन्ध में कोई विनिर्दिष्ट प्रावधान नहीं दिए गए है,परन्तु ब्रिटेन में इस सम्बन्ध  में कानून  बना है  जिसे मोबाइल फ़ोन (री -प्रोग्रामिंग एक्ट  )2002 कहा जाता है ,    जिसमे मोबाइल फ़ोन चोरी को भी एक अपराध माना गया है ,साथ ही इसमें दंड का भी समावेश किया गया है। 

Mobile Theft 

मोबाइल फोन चोरी /छिनौती /खोने से कैसे बचे एवं पता लगाए 

  • अपने मोबाइल का सदैव(I.M.E.I) No.याद रखे 
  • (I.M.E.I) No --याद न हो तो  स्टार हैश --06 --हैश {*#0 6 #} डायल करे। 
  • (I.M.E.I) No स्क्रीन पर आ जायेगा। 
  • मोबाइल फ़ोन में ट्रैकर सॉफ्टवेयर डाले। 
  • ये सॉफ्टवेयर हैंडसेट में दूसरा सिम कार्ड डालने से पहले दो लोगो को S.M.S करता है। 
  • थाने में सूचना दे जिसमे कोई दुविधा न हो। 
  • Equipment  Identity register  (EIR)बताता  है की सेट की लोकेशन  क्या है। 
  • Central Equipment  Identity register  (EIR) के साथ नेटवर्क पर (I.M.E.I) No ढूढ़ता है। 
  • हैंडसेट की सुरक्छा को मजबूत करे।

अपराध मोबाइल फ़ोन की चोरी -----------:

1 ----:भारतीय दंड विधान की धारा 379 (भा. द.वी) के तहत दण्डनीय। 
अपराध  -अजमानतीय न्यायिक  दण्डा अधिकारी प्रथम श्रेणी के न्यायालय विचारण। 
तीन वर्ष का कारावास या जुर्माना या दोनों। 

2 ----:मोबाइल फ़ोन की छिनौती। 

धारा 356 भारतीय दण्ड  विधान। 
अजमानतीय। 
2 वर्ष का कारावास या जुर्माना  या  दोनों। 

3 -----मोबाइल फ़ोन की लूट 

धारा 392 भारतीय  दण्ड विधान के अंतर्गत दण्डनीय। 
अजमानतीय।
दण्ड --:10 वर्ष का करा वास एवं जुर्माना। 


साभार --:
प्रदीप तिवारी (एडवोकेट )
जिला एवं सत्र न्यायालय कटनी 
7879578306 




Thursday, August 22, 2019

Cyber terrorism

साइबर आतंकवाद एक परीचय ----------:

11  सितम्बर 2001 ट्विन टावर अमेरिका में किये गए आतंकवादी हमले एवं 26 नवंबर 2008  को भारत के ताज होटल में हुए आतंकवादी हमले ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया क्योकि ये हमले दो  बड़े लोकतांत्रिक देशो के विरुद्ध किये गए थे,और ये दोनों हमले।, हमले के पूर्वे सावधानी न रखने के कारण , जांच एजेंसियो की लापरवाही के कारण हुये ,और  हमले होने के पूर्व तैयारी न होने के कारण हुए थे ,साथ ही इंटेलिजेंस एजेंसी इतने बड़े हमले होने का पूर्वे अनुमान भी नहीं लगा पाई थी !

  • साइबर आतंकवाद  इंटरनेट के माध्यम से निम्न प्रकार प्रकार से किया जाता है ----:

1 --प्रारंभिक रूप से साइबर आतंकवाद  इंटरनेट को टारगेट कर के किया जाता है!
2 --- साइबर आधारित आतंकवाद भौतिक जगत और वैश्विक जगत  को निशाना बना कर किया जाता है , जो आभासी दुनिया के माध्यम से किया जाता है !

  • साइबर आतकवाद की परीभाषा ---:
साइबर आतंकवाद को सर्व प्रथम मार्क पोलिट ने परिभाषित  किया है ,उनके अनुसार ---:
"साइबर आतंकवाद से आशय है की एक उद्द्येश्य पूर्ण हमला जो किसी राजनैतिक धार्मिक उन्माद के लिए किसी देश की सम्प्रभुता, एकता , अखंडता  ,को नष्ट करने के लिए इंटरनेट के माध्यम से कंप्यूटर द्व्रार किया जाता है "यह एक अघोषित और  छदम युद्ध की तरह है ,जो सुचना तंत्र , और सुरक्छा प्रणाली को पूर्ण रूप से ध्वस्त कर देता है ,जिसका पता लगा पाना आसान नहीं होता !
          
            साइबर आतंकवाद के प्रकार-----: 
  • व्यक्तिगत साइबर अपराध -------:
  • जो किसी व्यक्ति को टारगेट कर किया जाता है इसके अतर्गत    डेटा चोरी करना ,क्रेडिट कार्ड की जानकारी चुराना ,हैकिंग ,धमकी  भरे  सन्देश भेजना ,इत्यादि आता है। 
  • किसी देश के विरुद्ध किया गया अपराध -----:
  •  इस तरह का  आतंकवाद किसी देश की एकता अखंडता और सम्प्रभुता  को  नष्ट करने के लिए किया जाता है ,यह एक तरह का छद्म यूद्ध होता है जो किसी राजनैतिक और धार्मिक उन्माद के लिए किया जाता है। ट्विनटॉवर  अमेरिका , और ताज होटल एवं भारत की संसद में किया गया हमला साइबर आतंकवाद का एक उदाहरण था  जो कंप्यूटर के माध्यम से किया गया था। 
पूर्व सी.आई.ऐ चीफ विक्स क्रिस्टो के अनुसार  इंटरनेट सेवा इतनी सस्ती और सहज उपलब्ध होने के कारण आतंकवादियों के लिए वरदान साबित हो रही है , और अलकायदा जैसे आतंकवादी  संगठन इसका भरपूर इस्तेमाल कर  रहे है ,अमेरिका जैसे तकनीकी छेत्र  में महारथी देश अलकायदा जैसे संगठनों से परेशान  है तो भारत को भी जैसे मोहम्मद और लश्करे तोयबा जैसे आतंकवादी संगठनों से सावधान रहने की आवश्यकता है ,भारत में भी अलकायदा जैसे संगठन आतंकवाद फैलाना चाहते है ,आतंकवादी गतिविधियों के लिए सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल कर रहे है ,कश्मीर के कई युवको को वाट्सअप , एवं फेस बूक के माध्यम से अलकायदा जैसे संगठनों से जुड़े होने के कारण  गिरफ्तार किया गया था। 
साइबर आतंकवाद सबसे ज्यादा वेबसाइट के माध्यम से फैलाया  जाता है ,सन 2006 में  लगभग 5733 वेबसाइट बनाई थी जिसका  उपयोग सन्देश भेजने के लिए किया गया था वेबसाइट निम्न तरीके से बनाई जाती है। 
  •  इन्क्रिप्शन  मेथड  द्वारा 
 इस तकनीक के द्वारा अत्यंत काम समय वेबसाइट बना कर सन्देश वाहक को सन्देश भेजा जाता है ,   जिसमे प्राइवेट की का सोर्स कोड संदेश वाहक के पास होता है जिसके कारण वह  तुरंत  सन्देश डिकोड कर  बंद कर दिया जाता है ,ऐसे में जांच एजेन्सी के लिए  पता लगा  पाना   मुश्किल होता है की सन्देश कहा से आया और इसका सोर्स कोड क्या है। 
अन्य तकनीक जो साइबर आतंकवादियों द्वारा उपयोग की जाती है


  •  डेड ड्राप मेथड ----इस तकनीक में ई -मेल के माध्यम से सन्देश भेजा जाता है यह, सन्देश किसी स्लोगन पिक्चर , या थीम पर  आधारित होता है ,जो की कोड वर्ड में होता है जिसको समझ पाना मुश्किल   होता है।
  • स्टेनोग्राफी ----------:स्टेनो ग्राफी तकनीक में भी चित्रों , स्लोगन ,पिक्चर अदि के माध्यम से कोड वर्ल्ड में सन्देश लिखे जाते है उसे आसानी से यूजर तक   पहुंचाया  जाता है।
  • अन्य माध्यम --- :आज कल सोशल मीडिया आतंकवादियों के लिए अच्छा माध्यम बन गया है जिसके द्वारा बड़ी ही आसानी से सन्देश पहुचाये जा रहे है। फेस  बुक , वाटसअप इंस्टाग्राम ,ट्विटर ,और अन्य सोशल साइट  के माध्यम से आतंकवादी गतिविधिया बड़ी आसानी से संचालित हो रही है।




                                  
भारत में आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए बनाय  गए कानून।
सन २००४ में (टाडा )कानून बनाया गया जिसे बाद में संशोधित कर (यूं.ए.पी.ए )एक्ट बनाया गया। 
हालही में (एन . आई) एक्ट में संशोधन भी किया गया है की अगर कोई व्यक्ति आतंकवादी गतिविधियों में शामिल है तो उसे आतंकी घोषित किया  जायेगा।
भारतीय सूचना  प्रद्योगकी 2000 के अंतर्गत साइबर आतंकवाद को रोकने के लिए बनाय गए कानून ---:
किसी व्यक्ति की ऑनलाइन सम्पदा चुराने जैसे क्रेडिट कार्ड नंबर ,या अन्य जानकारी चुराने पर 66 (C  )  के अन्तर्गत दोशी  होता है !
इसके अलावा किसी को धमकाने या आघात करने के लिए सन्देश भेजने पर 66 (A   ) के अंतर्गत दोषी होगा।
आतंकवादी गतिविधयों के लिए कंप्यूटर सोर्स कोड को तोड़ने पर धारा 65 सूचना  प्राद्योगकी अधिनियम के अंतर्गत दोषी होगा। 
आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के कारण  सुचना प्राधौगकी अधिनियम की 66 (f ) के अंतर्गत दोषी होगा। जिसमे सात  साल से ऊपर की सजा या आजीवन करवास और जुर्माना की सजा हो सकती है । 
किसी वेबसाइट ,ईमेल अदि को हैक करने पर सेक्शन 43 ,एवम धारा 66 के अंतर्गत दोषी माना  जायेगा। 

टेरर फन्डिंग ------: विश्व के अनेक देश वर्तमान समय में टेरर फौन्डिंग की  समस्या से जूझ रहे है , ऑनलाइन माध्यम से कोर बैंकिंग समाधान के द्वारा मोबाइल बैंकिंग और नेट बैंकिंग के माध्यम से फंड एक स्थान से दूसरे स्थान पर बड़ी ही आसानी से ट्रांसफर हो जाता है,अलकायदा जैसे संग़ठन  अपनी आतंकवादी गतिविधियों के संचालन  के लिए इसका उपयोग कर रहे है। भारत सरकार  ने टेरर फंडिंग को रोकने के लिए कड़े कदम उठाय हैँ, जिसमे कई गैर सरकारी  संगठनों पर रोक लगाई है जो विदेशो से ऑनलाइन चंदा उगाही कर भारत में आतंकवाद फलते थे। साथ ही भारत सरकार ने फेमा और फेरा अधिनियम में भी संशोधन कर ऑनलाइन फौन्डिंग को रोकने का प्रयास किया है |
साभार
प्रदीप तिवारी अधिवक्ता(जिला एवं सत्र न्यायालय
 कटनी )
7879578306




Thursday, August 15, 2019

Cyber law on Online Identity Theft


Online Identity  Theft

  1--ऑन --लाइन पहचान चोरी किस प्रकार होगी -

  • .किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत अथवा विशिष्ट पहचान को उस व्यक्ति की अनुमति के बिना, बेईमानीपूर्वक तथा कपट पूर्वक अपने प्रयोग के लिये डाउनलोड करना, कॉपी करना, डेटा निकलना पहचान की चोरी का अपराध है |                 
  • किसी व्यक्ति की ऑन --लाइन पहचान के
  • इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर जिसमे डिजिटल हस्ताक्षर सम्मलित है |
  •  पासवर्ड/ पिन ,बायो मैट्रिक्स पहचान प्रणाली 
  • अन्य विशिष्ठ पहचान के रूप आदि 

      3-- सूचना प्रद्योगकी अधिनियम की धारा 66 -ग का उद्देश्य --- 

  •   व्यक्ति की ऑनलइन पहचान की सुरक्षा   
  •  व्यक्ति की सभी व्यक्तिगत सूचना /जानकारी /डेटा की ऑन लाइन ऑन लाइन        प्रयोग   किये जाने पर सुरक्षा प्रदान करना |

  • 4---ऑन --लाइन चोरी के अपराध को सिद्ध करने के आवश्यक तत्व ---
  • जो कोइ व्यक्ति किसी यूजर की जानबूझकर उसकी जानकारी का गलत इस्तेमाल करने के लिए इन्टरनेट से डाउनलोड करता है या कॉपी करता है, या प्राप्त जानकारी को कपट पूर्वक किसी अन्य वयक्ति से साझा करता है तो वह साइबर अपराध के अंतर्गत अपराध करीत करता है, साथ ही भारतीय दंड सहिंता के अंतर्गत दोषी कहलायगा |
  • इस धारा के अंतर्गत लिए गए कपट पूर्ण शब्द का अर्थ वही होगा जो भारतीय दंड सहिंता की धारा 25 मेँ दिया है, इस प्रकार `बेईमानी पूर्वक ´का अर्थ भारतीय दंड सहिंता की धारा 24  से लिया जाएगा ,इसी प्रकार सदोष हानि के लिए दंड सहिंता की धारा 23 से लिया जाएगा |
       5 --- अपराध ----:अगर कोइ वयक्ति किसी व्यक्ति के इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर, पासवर्ड/  पिन या किसी अन्य विशिष्ठ पहचान का कपटपूर्ण या बेईमानी पूर्वक प्रयोग करता है तो वह निम्न लिखित अपराध का दोषी होगा |
  • धारा 66--ग,  सूचना प्रद्योगकी  अधिनियम 2000 के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा |
  • अपराध अजमानतीय तीन वर्ष की सजा और जुर्माना |
  • अन्वेषण पुलिस अधिकारी द्वारा किया जाएगा 
  • जुर्माना ---एक लाख रूपए तक |
  • विचारण न्यायिक दण्डा अधिकारी प्रथम श्रेणी !
साभार -----:

प्रदीप तिवारी (अधिवक्ता)
जिला एवं सत्र न्यायालय  (कटनी)
7879578306   






Sunday, August 11, 2019

Misuse of section 498{A} and dowry act.


दहेज़ प्रथा और 498(A) भारतीय दण्ड सहिंता की धारा के हो रहे दुरपयोग पर लेख !


वर्णन ------:

भारतीय समाज मेँ विवाह पश्चात कन्या की विदा होने पर मायके पक्छ द्वारा उपहार दिए जाने की प्रथा बहुत पुरानी थी, अगर हम महा भारत और रामायण आदि ग्रंथो का अध्ययन करें तो इसका वर्णन हमें मिलता हैँ, जब माता सीता की विदा मिथला से हुई थी तब राजा जनक द्वारा उनकी बिदा के दौरान ढेर सारे उपहार दिए गए थे यहा तक की उनकी सेवा के लिये दास दासियो को भी भेजा गया था, इसी तरह से महाभारत काल मेँ पांचाल नरेश द्वारा महारनी द्रोपती की बिदा मेँ उनको उपहार दिए गए थे परन्तु यह कोई मांग नहीं थी यह अपनी पुत्री को स्वेक्छा से दिए गए उपहार थे, कोई बाध्यता नहीं थी, अन्य प्राचीन भारतीय धर्म ग्रंथो का अध्ययन करें तो दहेज़ जैसी कुप्रथा का वर्णन कही नहीं मिलता|323 ईसा  पूर्व मौर्य कालीन इतिहास  पर भी दृष्टि डाले तो इस प्रथा के आरम्भ होने का उल्लेख नहीं मिलता|दहेज़ प्रथा की मुख्य रूप से शुरुआत मध्य काल मेँ हुई परन्तु यह कुप्रथा कब से आंरभ हुई इसके ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं हैँ, इस समय विवाह के दौरान वर पक्छ द्वारा वधु पक्छ द्वारा उपहार लेने देने के सम्बन्ध मेँ ठहराव किया जाने लगा लेन देन की बाते शुरू  हो गई और एक कुप्रथा ने समाज मेँ जन्म ले लिया, और देखते देखते समाज मेँ व्यापक रूप से फेल गई, दहेज़ के लिए महिलाओ को प्रताड़ित किया जाने लगा यहा तक की बहुओ  को ससुराल मेँ जलाया जाने लगा|उस समय जागरूकता की कमी एवं महिलाओ के शिक्छित न होने के कारण वे इस कुप्रथा के विरुद्ध आवाज़ नहीं उठा पाती थी |
समाज मेँ फैले इस दहेज़ के दानव को देखते हुए प्रथम बार  सन  1967 मेँ  दहेज़ एक्ट बनाया गया जिसमे दहेज़ का लेना देना अपराध घोषित किया गया और अगर कोई व्यक्ति दहेज़ की मांग करता हैँ या कोई मांग करने पर दहेज़ देता हैँ दोनों के लिए सजा का प्रावधान किया गया, परन्तु इसके बाद भी इस अपराध मेँ कोई कमी नहीं आयी क्योंकि वधु पक्छ की इसमें मौन सहमति होती थी और अपनी बेटी की अच्छे घर मेँ शादी के लालच मेँ लोग दहेज़ देते रहते थे |

दहेज़ प्रथा को  रोकने के लिए कानून मै व्यापक शंसोधन     --:

जैसे जैसे समाज उन्नति के पथ पर अग्रसर हुआ इस कुप्रथा के विरोध मेँ स्वर उठने लगे, सन 1980--82 मेँ पूना मेँ महिला संगठनों द्वारा आंदोलन चलाया गया यह आंदोलन मंजू शारदा और साहिला ललकार की दहेज़ के लिए निर्मम हत्या के लिए चलाया गया था, और भारत सरकार को महिलाओ की सुरक्छा के लिए सोचने पर मज़बूर कर दिया था,इसी समय भारतीय फ़िल्म जगत द्वारा इस मुद्दे से समन्धित फिल्मे बनाई गई जैसे दूल्हा बिकता हैँ बोलो खरीदोगे आदि !समाज मेँ इस कुप्रथा के व्यापक विरोध को देखते हुए भारतीय दण्ड सहिंता, भारतीय सक्झय अधिनियम, एवं दण्ड प्रक्रिया सहिंता मेँ संशोधन किया गया !भारतीय दण्ड सहिता मै संशोधन कर दहेज़ के लिए महिला और उसके परिवार को प्रताड़ित करने पर 498(A)धारा को जोड़ा गया अपराध अजमानतीय घोषित किया गया साथ ही दहेज़ की मांग करने वाले और उसके परिवार वाले जो इस कृत्य मे शामिल हैँ तीन वर्ष से अधिक की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया, साथ ही दहेज़ के लिए किसी महिला की हत्या करने पर धारा 304{B} को जोड़ी गयी, जिसमे सात साल से अधिक की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया, साथ मे घरेलू हिंसा अधिनियम को भी लाया गया इन कानूनों को लागू करने का मुख्य उद्देश्य समाज मे महिलाओ को व्यापक रूप से सुरक्छा प्रदान करना था साथ ही दहेज के लिए हो रहे जघन्य अपराधों को भी  रोकना था, परन्तु जैसा हम जानते हैँ कानून लोगो  की भलाई के लिए बनाये जाते हैँ परन्तु इसका व्यापक रूप से दुरपयोग भी शुरू हो जाता हैँ, इस कानून का भी वर्तमान समय मे काफ़ी दुरपयोग हो रहा हैँ, कानून हमेशा समाज मे केवल और केवल लोगों  की भलाई के लिए बनाये जाते हैँ, यह कानून इसलिए बनाया गया की एक सभ्य समाज मे बहु बेटिओ का दहेज़ के लिए जलाया जाना कतई उचित नहीं परतुं इसका दुरपयोग भी निरंतर बढ़ता जा रहा हैँ आंकड़े बताते हैँ की  दहेज़ प्रकरण मे लिखाई गई हर तीसरी एफ. आई. आर फ़र्ज़ी होती हैँ और न्यायालय मे अभियुक्त फ़र्ज़ी मुकदमा होने के कारण दोषमुक्त हो जाते हैँ!सावित्री देवी विरुद्ध रमेश चंद्रन ओर अन्य के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पाया की इस एक्ट का दुरपयोग हो रहा है ,इसी तरह से राजेश कुमार एवं अन्य विरूद्ध उड़ीसा राज्य के मामले में माननीय सर्वोच्च  न्यायालय ने पाया की इस एक्ट का व्यापक  दुरपयोग हो रहा है और आवश्यक दिशा निर्देश जारी किये1 परन्तु इसका दुरपयोग रुक  नहीं रहा इस धरा का उपयोग ब्रह्म अस्त्र के भाती  दूसरे पक्छ  को झुकाने के लिए किया जा रहा है, और विडबंना यह है की एक महिला ही दूसरे  महिला के प्रति इसका उपयोग कर रही है ,  और मामले पंजीबद्ध होने पर परिवार के पढ़ने लिखने वाले बच्चे भी घसीट दिए जाते है और उनकी जिंदगी बर्बाद होती है!इस धारा के बढ़ते दुरपयोग के कारण पुरषो में आत्म  हत्या की पृवत्ति बढ़ रही है ,एवं वे  डिप्रेशन के शिकार  हो रहे है !

धारा 498{ A } के दुरपयोग होने के मुख्य कारक -----:

  • मायके पक्छ का लड़की के ससुराल में अत्यधिक दखल !
  • पढ़े लिखे होने के कारण अहँकार का आपस में टकराना !
  • धैर्य की अत्याधिक कमी !
  • रिश्तो से जयादा  धन को अत्यधिक  महत्व देना !
  • भोग वादी संस्क्रति का उदय !
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दो  जजों  की  खण्ड  पीठ ने दहेज़ एक्ट के हो रहे दुरपयोग को रोकने के लिए एक व्यवस्था   अपने एक निर्णय में  दी जो निम्न प्रकार है -----:
  • अगर कोई ऍफ़. आई.आर  पीड़ित पक्छ द्वारा लिखाई  जाती है तो अभियुक्त गणो  की सीधे गिरफ़्तारी नहीं होंगी !
  • समन्धित एफ. आई.आर को मजिस्ट्रेट के यहा पर भेजा जायेगा जिस पर विचार कnरने के लिए सिविल सोसाइटी का गठन होगा !
  • उक्त पैनल सम्बंधित मामले का सुक्छ्म्ता  से परिशीलन करेगा और सम्बंधित पाक्छाकारो  को  बुलाएगा और अगर पायेगा की अपराध कारित  हुआ है तो मामला पंजीबद्ध होगा !
परन्तु 2019 में तीन जजों की खण्ड पीठ ने कुछ महिला संगठनों की याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्णय पारित किया और कहा की उक्त मामले में सिविल सोसाइटी का गठन व्योहारिक नहीं है और उक्त दी हुई व्यवस्था को पलट दिया और निम्न दिशा निर्देश पारित किए !
  • अगर  इस सबंध में कोई एफ.आई.आर दर्ज होती है तो पुलिस सीधे गिरफ्तार कर मुकदमा पंजीबद्ध करेगी !
  • मामले की सुनवाई   सामन्य प्रक्रिया के तहत होगी !
  • अग्रिम जमानत की सुविधा होगी पीड़ित पक्छ अग्रिम जमानत की याचिका न्यायालय में लगा सकता है !
माननीय  सर्वौच्च  न्यायालय के इस फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए , परन्तु निश्चित रूप से इस फैसले से इस ऐक्ट का दुरपयोग करने वाले लोगो को व्यापक रूप से बल मिलेगा, हम एक सभ्य समाज की और बढ़ रहे है जहा पर स्त्री  और पुरुष कंधे से कन्धा मिलाकर चल रहे है ,इस समय समाज में अगर कोई  किसी कानून का गलत इस्तेमाल कर किसी  बेगुनाह को फसाय  तो  यह कतई ठीक नहीं ,कानून की भी यही मन्शा रहती है की किसी बेगुनाह को सजा न मिले ,अगर मिलती है तो उसका सारा परिवार प्रताडित होता है , अतः अब इस कानून में व्यापक संशोधन की आव्यशकता है ,साथ ही अगर कहा जाता है की स्त्री और पुरुष बराबर है तो कानून में भी संशोधन कर पुरषो के पक्छ में कानून बनाने की आव्यशकता है !

साभार 
प्रदीप तिवारी (अधिवक्ता )
7879578306

Thursday, August 8, 2019

On line gambling

ऑन लाइन जुआ -

-एक परिचय -:

जुआ के सम्बन्ध मेँ विभिन्न देशो मेँ विभिन्न प्रावधान होते हैँ, कुछ में  देश जुआ प्रतबंधित हैँ, तथा कुछ देशो मेँ वेध, इन्टरनेट के माध्यम से विभिन्न वेबसाइट  द्वारा यूजर को लाटरी, ऑनलाइन जुआ खेलने का प्रलोभन दिया जाता हैँ, ऐसी स्थिति मेँ अपराध का पता कर पाना बेहद मुश्किल हैँ, जब एक देश की सरकार ऑनलइन जुआ खेलने को प्रतिबंधित करती हैँ एवं दूसरे देश की सरकार ऑनलइन जुआ खेलने को अपराध नहीं मानती,!ऑनलाइन जुआ खेलने मेँ सबसे बड़ा खतरा यूजर के डेटा और डेबिट और क्रेडिट कार्ड का पासवर्ड चोरी होने मेँ हैँ, यूजर के द्वारा ऑनलइन जुआ खेलने मेँ कोई इस्पष्ट प्रावधान न होने के कारण सार्वजनिक जुआ अधिनियम 1867 लागू होता हैँ, परन्तु कुछ विशिष्ट पतिस्थ्तियो मेँ छल करना, आपराधिक न्यास भंग (धारा 309(1) से (viii) एवं आपराधिक दुर्विनिओग की  धारा( 403)  का प्रयोग किया जा सकता हैँ, सूचना प्रद्यौगकी की धारा 75 के अनुसार यदि कोई अपराध भारत मेँ  स्थित  किसी कंप्यूटर, कंप्यूटर प्रणाली, या कंप्यूटर नेटवर्क को निशना बनाकर भारत देश के बाहर किया गया हैँ, तो ऐसी स्थिति मेँ साइबर अपराध होने की सूचना मिलने पर सूचना प्रौद्योगकी अधिनियम 2000 के प्रावधान लागू होंगे !इसके लिए धारा 81 को भी देखा जाना आवश्यक हैँ  की इस धारा की सुसंगता उपरोक्त अपराध के सन्दर्भ  कहा तक वैध हैँ!


                                      : ----------   On line gambling--------: 


2----अपराध ऑनलाइन जुआ ----:
. सार्वजनिक जुआ अधिनियम, 1867 की धारा 3 के अंतर्गत प्रतिबंधित एवं अपराध घोषित !
3---असंज्ञेय एवं जमानतीय.
. धारा 3 मेँ जुआ घर के स्वामी या भारसाधक के लिए दण्ड का प्रावधान हैँ, एवं धारा 4 के अंतर्गत जुआ घर मेँ पाए जाने मेँ दण्ड की व्यवस्था हैँ !साथ ही धारा 5 मेँ मेजिस्ट्रेट जिला मजिस्ट्रेट जिला पुलिस अधीछक के पास विश्वशनीय सुचना होने पर जुआ घर मेँ प्रवेश करने तथा तलाशी लेने की शक्तियां प्राप्त हैँ!
धारा 3के अंतर्गत अपराध  अजमानतीय हैँ, एवं शेष के लिए जमानतीय हैँ!
(जुआ घर के स्वामी होने पर पकडे जाने पर लगने वाली धाराएं )
धारा 3, 5, और 13 एवं 7
.अधिकतम सजा एक  मास से लेकर एक वर्ष तक का कठोर कारावास और जुर्माना ;
अन्वेषण अधिकारी -----: थाने का भारसाधक अधिकारी या उपनिरीक्छक. !
प्रकरण का विचारण प्रथम श्रेणी मेजिस्ट्रेट के न्यायालय मेँ होगा,!
दण्ड का विधान  ---:प्रथम बार अपराध करीत करने के लिए तीन माह की सजा |
दूतीय  बार अपराध करने पर प्रथम बार अपराध का दुगना!
जुर्माना ----:-प्रथम बार अपराध मेँ 200/रूपए जुर्माना !
दूतीय बार अपराध होने पर प्रथम बार किये अपराध मेँ लिए गए जुर्माने का दुगना !
साभार
प्रदीप तिवारी (अधिवक्ता )
7879578306